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शायद एक दिन ऐसा भी होगा | “वियोग सृंगार”

सुकून मिलता है दो लफ़्ज कागज पर उतार कर, कह भी देता हूँ और ....आवाज भी नहीं होती ||
सुकून मिलता है दो लफ़्ज कागज पर उतार कर, कह भी देता हूँ और ....आवाज भी नहीं होती ||
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शायद एक दिन ऐसा भीं होगा…..
जब तुम्हे हमसे प्यार न होगा
होंगी न कोई यादें न कोई फ़रियाद होगा
आँखों में आंसू होंगे न मेरा इन्तजार होगा
न होंगी प्यारी बाते न फिर वो प्यार होगा …….

शायद एक दिन ऐसा भी होगा…….
न कोई गुस्सा होगा न कोई रहबरदार होगा
बस होंगी कुछ यादे जो दिल को सुलगाता होगा
वो दिन भी सूखा होगा और पेट भी भूखा होगा
क्या खाया है तुमने न ये पूछना भी होगा……..

शायद एक दिन ऐसा भी होगा……
न बाते हमसे होंगी न फिर ये राते होंगी
न मुलाकाते होंगी न मेरा इन्तजार होगा
क्या कहते हो तुम किससे मिलते हो तुम
कौन कहेगा मुझसे कितने झूठे हो तुम…..

शायद एक दिन ऐसा भी होगा……
एक दिन ऐसा भी होगा जब सिर्फ तू ही होगा
पतझड़ के पत्तो की तरह मेरा वजूद होगा
फिर एक आएगी आंधी उड़ जायंगे ये पत्ते
फिर क्या …..न मैं हूँगा न मेरा वजूद होगा

शायद एक दिन ऐसा भी होगा |
शायद एक दिन ऐसा भी होगा ||

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