सुकून मिलता है दो लफ़्ज कागज पर उतार कर, कह भी देता हूँ और ....आवाज भी नहीं होती ||
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यूँ तो तारीफ करने वाले किसे नहीं हैं भाते
पर निंदा करने वाले जीना सिखा देते हैं,
रोशनी में रहना किसे नहीं हैं पसंद यहाँ
पर अँधेरे में रहने वाले चलना सिखा देते है,
महलों में रहने वाले नेता क्या जाने दुःख उनका
पर झोपड़ियों में रहने वाले उनकी सरकार बना देते है,
फरियाद सुनाना और सुनना तो अब सबकी आदत हो गई है
पर फरियाद को सुन कर बनाने वाले दुनियां चला देते है,
समझ नहीं आता की चल रही हैं या चला रही है जिंदगी
पर जिंदगी को चलने वाली जिंदगी बना देते है ||
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