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दो कौर अन्न

सुकून मिलता है दो लफ़्ज कागज पर उतार कर, कह भी देता हूँ और ....आवाज भी नहीं होती ||
सुकून मिलता है दो लफ़्ज कागज पर उतार कर, कह भी देता हूँ और ....आवाज भी नहीं होती ||
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कोई पैदल चलता है

और कोई गाड़ी से

कोई पत्तल से खाता है

और कोई थाली से

कोई खुशनुमा खाता है

और कोई नाशादी से

कोई भी खाए और कैसे भी

बस दो कौर अन्न चाहता आसानी से

मैं भूखा अभी चाहता हूँ खाना

मेरे मालिक तुम कल के लिए बचाना

ये चिंता होती है एक भूखे की और

नेता को पड़ी है सिर्फ रूठे की

नहीं चाहियें कोइ संरक्षण मुझको

और ना संसद में अन्न बिल योजना

एक भूखे को क्या चाहिए

सिर्फ दो कौर अन्न खोजना

ओ मेरे देश के नेता

दया करो कुछ हमपर

जो हो चुके पास बिल संसद में

कभी तो कर लो अमल भी उन पर

मत करो विभाजित धर्मो से लोगो को

सभी धर्मो है एक ही खजाना

बस दो कौर अन्न ही चाहना ||

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