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तिरंगे को लहराऊंगा

सुकून मिलता है दो लफ़्ज कागज पर उतार कर, कह भी देता हूँ और ....आवाज भी नहीं होती ||
सुकून मिलता है दो लफ़्ज कागज पर उतार कर, कह भी देता हूँ और ....आवाज भी नहीं होती ||
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कर लिया है संकल्प मैंने तिरंगे को लहराऊंगा ,
दुनियां की सीमा रेखा में सब पर चल कर जाऊँगा ,
जिंदगी हो जैसी भी मेरी जीवन को बरसाऊंगा ,
गरिमा को पाने के लिए मौत को भी तरसाऊंगा ,
चन्दा पीछे सूरज आगे गर्मी को भी सह जाऊंगा ,
कंकर पत्थर और पहाड़ सब को चीर के जाऊँगा ,
बिना हथौड़ी के पत्थर में वो भगवान् बनाऊंगा ,
कर्म को पूजा मानकर जीवन सफल बनाऊंगा ,
फिर अब क्यों न लेलो जान ही मेरी फिर भी तिरंगे को लहराऊंगा ||

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