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निराशा

सुकून मिलता है दो लफ़्ज कागज पर उतार कर, कह भी देता हूँ और ....आवाज भी नहीं होती ||
सुकून मिलता है दो लफ़्ज कागज पर उतार कर, कह भी देता हूँ और ....आवाज भी नहीं होती ||
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दोस्तों अपने कॉलेज, युनिवर्सिटी के लगभग सारे परिणाम आ चुके है और उम्मीद है की परिणाम बेहतर ही रहा होगा और जिनके भी परिणाम अभी नहीं आये है आशा है उनका भी परिणाम बेहतर ही रहे |
दोस्तों अक्सर हम लोग अपने कार्यफल से निराश हो जाते है अक्सर ये सब के साथ होता है मेरे साथ भी हुआ था, पर इसका अर्थ ये नहीं की सिर्फ उसी की चिंता में अपना सारा समय व्यर्थ किया जाये आगे पूरा जीवन पड़ा है गलती सुधारने के लिए, वक्त को व्यर्थ करना मतलब अपने उत्साह को कम करना है किसी ने सही कहा है “आप वक्त को बदल नहीं सकते इसलिए ख़ुद को बदलने की कोशिश करें, वक्त आपके अनुकूल हो जाएगा ।” आपने देखा होगा की अक्सर हम दुखी अपनी असफलता से नहीं बल्कि उससे कम होने वाली शान से होते है तो इस संधर्भ में कन्फ्युशियस ने कहा था ” हमारी सबसे बड़ी शान कभी न गिरने में नहीं है, बल्कि जब-जब हम गिरें, हर बार उठने में है
दोस्तो कार्य कोई भी हो एक दिन में नहीं होता हमें कई प्रयास करने पड़ते है और उसके लिए एकाग्रता और कर्तव्यपालन जरूरी है, अक्सर हम अपने उतावलापन या जल्दीबाजी से मात खा जाते है जबकि हमें बहुत अच्छी तरह पता होता है की “ कोई भी काम एक दिन में नहीं सफल होता। काम एक पेड़ की तरह होता है। पहले उसकी आत्मा में एक बीज बोया जाता है, हिम्मत की खाद से उसे पोषित किया जाता है और मेहनत के पानी से उसे सींचा जाता है, तब जाकर सालों बाद वह फल देने के लायक होता है। ” इसलिए इंतजार करना छोड़िये और अपनी मन्जिल के पीछे हाथ-पैर धो कर पड़ जाइये हो सकता है की एक-दो बार आपको असफलता मिले पर हार न मानिये,
हम एक आदर्श रास्ते की खोज में दिनोदिन इन्तजार करते रहते हैं कि शायद वह अब मिलेगा मगर हम भूल जाते हैं कि रास्ते चलने के लिए बनाये जाते हैं, इन्तजार के लिए नहीं
और अब जब चल ही चुके है तो अपनी मन्जिल को भी पहचानिये और उसे पाने के लिए हर एक प्रयास करिये बस आखिरी बार चार पंक्तियाँ कहूँगा जो हमे जरूर प्रेरित करेगी ,
मन्जिल मिल ही जायेगी भटकते हुए ही सही
गुमराह तो वो है जो घर से निकले ही नहीं

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